आख़िर क्यों!


कभी खुशियों को ढूंन्ढा करे,
कभी खुशियाँ हमे ढूंन्ढा करी,
हर गम मे फिर भी हम साथ रहे,
तो निगाहों ने अब तनहा क्यों आहें भरी!
ज़माने के सितम तो थे ही साथ सहने के लिए,
इसीलिए तो साथ साथ कसमे भरी!
छाया बनने का वादा तुम साथी करते रहे,
फ़िर हर अंधेरे मैं हमसे क्यों तुम छाया,
दूर रही!!
रौशनी मैं तो सब थे साथ मेरे,
तुम भी हातों मैं हाथ लिए साथ रही!
जब अपनापन पाने के लिए तुम्हे ताका करे,
तब आख़िर क्यों दूर जाने की बातें कही!!
जाना ही था तो साथ लिए जाते,
हम मौन पग धरते, चाहे कही,
आज इन बुझती आंखों से भी तुम्हे ढून्ढ्ते रहे,
पर आज भी दिल नही मानता,
आख़िर क्यों? तुम नही कही!!

.........एहसास

1 टिप्पणी:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aakhir kyon mere dil main tumhare liye ek chhote bhai sa pyar hai....

aakhir kyon mujhe lagta hai....tum ehsaas ke saagar ke ek heera ho.......

aakhir kyon!!!!!!!!!!

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

विशेष : यहाँ प्रकाशित कवितायेँ व टिप्पणिया बिना लेखक की पूर्व अनुमति के कहीं भी व किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना या पुनः संपादित कर / काट छाँट कर प्रकाशित करना पूर्णतया वर्जित है!
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित 2008