हम बहुत सताते हैं


न जाने क्यूँ तोड़ते हैं, उन्ही दिलों को!
जिन दिलों मैं हम बस जाते हैं!!
पल पल रोते हैं, खुली आंखों हम....
झुकी पलकों वो इल्जाम मैं कहते हैं!
हम बहुत सताते हैं!!



सोचते हैं कौन सूत्रधार, इन् गुनाहों का!

क्यूँ न चाह कर भी अपनी आंखों से रिसते
आन्सूनों की कीमत चुकाते हैं!!

फ़िर भी हर उठती निगाह कहती है!

हम बहुत सताते हैं!!

शीश उठा गयी अट्टालिकाएं!

बुलंद हो गए दरवाजे हैं!

हम रह गए इस पार बेबस....

सुने-उजडे विश्वास के गलियारे हैं!!

एहसास कदमो मैं बिछाते!

काश कोई पास आ कहता!!

की, हम बहुत सताते हैं!!



....एहसास!

मने बाहर आबा द्य्यो

मैं थारे हिवडे री चिड़कली,
रन-झुन रन-झुण गाबा द्य्यो!
लग स्यूं हिवडे, चूमूं थारे गालां...
पर थे , मान मने बाहर आबा द्य्यो!!

मीरा पन्ना, पद्मा हाडी!
थारी कोख्ह रो गौरव बन जबा द्य्यो!
मैं थाने दयून कन्या दान रो अवसर...
ऐ मारी जन्मा, मने बाहर आबा द्य्यो!!

मुंह तू कईं लटका कर बैठी...
गोटा-तारा लुगडी पे, लग जाबा द्य्यो!
संग-संग, गौरा-तीज आपां पूजें॥
ऐ मारी सखी मने बाहर आबा द्य्यो!!

नवरात्रा रे नौ दिन पाडा,
घर घर कन्या ढूंढे है...
आग्य्यो मुहूर्त घट धर्बा रो!
ता जनम री कन्या, पुजाबा द्य्यो!
और मैं छोउंगी थारे पगलया॥
ऐ मारी दात्री, मने बाहर आबा द्य्यो!!

जग री चिंता मत कर माँ माहरी॥
ममता रो दूध रिस जबा द्य्यो!
पुरुष बन्या, अब बाप बने वो॥
नाथ थे दोन्या, मने बाहर आबा द्य्यो!!

ऐ जन्मा मने बाहर आबा द्य्यो!!

...एहसास

हिवडे = ह्रदय
चिदक्ली = बेटी
मीरा = मीरा
बाईपन्ना = पन्ना
धायपद्मा = पद्म्मा वती
हादी = हादी रानी
लुगदी = ओढ़ने का दुपट्टा
गौर -तीज = गणगौर -तीज
पाडा = मौहल्ला
घट धर्बा= कलश स्थापना
पगल्या = चरण, पाँव

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

विशेष : यहाँ प्रकाशित कवितायेँ व टिप्पणिया बिना लेखक की पूर्व अनुमति के कहीं भी व किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना या पुनः संपादित कर / काट छाँट कर प्रकाशित करना पूर्णतया वर्जित है!
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित 2008