मन को भरमाये नभ चन्दा ......
पर पथ दिखलाता हे दीपक।।
मन बहकाए खिलता चम्पा ......
आँगन महकाती तुलसी हे।
तू स्वंप्न-सजी, मन छाया ......
वो शाश्वत हे अधिकार मेरा।
वो प्रीत हे तू हे प्रियतमा !
वो त्याग हे, तू चाहत हे!
तुझको ढूँढा किस्मत में,
वो किस्मत से आयी आँगन!
कर तन मन अपना सब अर्पण ......
मुझको जो दिया एक नव जीवन।
तू पूजा मेरे प्रेम की हे .....
में फल हूँ उसकी तपस्या का।
तू सागर हे, वो हे गंगा!
वो त्याग हे, तू चाहत हे!
दिन रात तड़प के काटी हे .....
तेरे दरस की कसक सताती हे।
कोसा हे खुदी को नाम तेरे,
यूँ रहे अधूरे अरमान मेरे!
मेरी रात सुहागन कर बैठी .......
हर सुबह स-अर्चन, सम्मान दिए!
वो थाम चली जो हाथ मेरे,
हर तड़क जला, ले साथ फेरे!
तू मावस, काम का पर्दा हे!
वो पूनम, मस्तक की बिंदिया!
तू कविता हे वो हे अर्चन,
वो त्याग हे, तू चाहत हे!
चाह के भी न तुझको जान सका ......
वो खुद को भुला मेरी पहचान बनी!
में नाम तेरे बदनाम हुआ,
वो संसार मेरा, मेरी आन बनी!
तू तू है, न तेरी काया हे!
वो मुझमे समां, मेरी छाया हे!
तू स्वप्न हे, वो मेरी रचना!
वो त्याग हे, तू चाहत हे!
वो त्याग हे, तू चाहत हे!
एहसास ........