उठ ना एक बार फ़िर बेटा कह के पुकार दे

माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़
फ़िर से थाम ले......
देख आँख भर आयी है!
थोड़ा तो दुलार दे....
जहाँ भर के लिए तन मन से नकारा हूँ!
पर तेरा तो बेटा हूँ....!
उठ ना......
बेटा कह के एक बार फ़िर से पुकार दे!!
माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़
फ़िर से थाम ले......
देख आँख भर आयी है!
थोड़ा तो दुलार दे....

कभी न किसी की सुनी....
न समझी!
तू ही मेरा जहाँ थी,
मेरी तो साँसें तुझमे ही उलझी!!
देख खामोशी के अंधेरे फ़िर
से घिरने को हैं ...
मेरे लिए माँ
तेरी ममता को फ़िर से आकार दे!
उठ ना !
बेटा कह के एक बार फ़िर से पुकार दे!!
माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़
फ़िर से थाम ले......
देख आँख भर आयी है!
थोड़ा तो दुलार दे....

हाथ पैर भी दिए जहाँ वाले ने॥
पर तेरे हाथों ही तृप्त हुयी अत्म्मा...
तेरी ही गोद मैं , नापा चार कदमो का जहाँ!!
ये मेरा दुर्भाग्य था
या तेरे भाग्य की हीनता...
आज मेरी ममता का साया बिखरा है जमीं पर ...
तुझे उठाने की ताकत इन हाथों मैं होती....
इसकी खुदाई को दुहाई तो दे!
उठ ना !
बेटा कह के एक बार फ़िर से पुकार दे!!
माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़ फ़िर से थाम ले......देख आँख भर आयी है!थोड़ा तो दुलार दे....

जीवन भर तू संघर्ष की मूरत बनी रही....
अभिशाप मैं मिला मैं और तू भाग्य का फल मान
मुझे थामे रही!
भर पेट खिलाया, छाती पे सुलाया!
ख़ुद खाली पेट, बिन बिछोना सोती रही!!
एक झलक देख ना॥
तरस खाती, लेकिन पास ना आती
जमाने की आँखें!
तेरे संघर्ष और मेरी लाचारी को देख रही हैं!
तेरे रूप मैं माँ,
इस जहाँ से ममता मर गयी!
उठ और इस निष्ठुर जग को बोल दे!!
उठ ना !
बेटा कह के एक बार फ़िर से पुकार दे!!
माँ बड़ा हाथ , ऊँगली पकड़ फ़िर से थाम ले......देख आँख भर आयी है!थोड़ा तो दुलार दे....

.........एहसास!

कविता तेरा रूप अक्सर धुन्धता हूँ

कविता तेरा रूप अक्सर धुन्धता हूँ.....
पर हर बार तेरी छाया मैं दिलबर को चूमता हूँ...
कभी तू उसकी आँखों मैं समाया गहरा सागर है
तो कभी लबों पे ठहरी शबनम की बूंद है ॥
कभी केशों की कालिमा मैं छिपी घनघोर घटायें...
कभी चंचल चितवन से झोमता मयूर॥
उसकी साँसों मैं गूंजती तेरी मल्हारें
खामोशीमैं सिमटा भावों का ग्रन्थ....
महबूब पे रचता हूँ कविता...
या कविता मैं महबूब संग झूमता हूँ
कविता तेरा रूप अक्सर धुन्धता हूँ.....
पर हर बार तेरी छाया मैं दिलबर को चूमता हूँ!!

.......एहसास!

कविता क्या तेरी पहचान?


क्या है तू , ऐ कविता?

क्या तेरी पहचान?

मदिर की आरती का स्वर है,

या है मस्जिद की अजान....

गुरुमुखी से सजी है तू,

या बाइबल है तेरी शान?

कवि का तो धरम है,

है एक पहचान!!

क्या है तेरा धरम?

या तू इससे अनजान?

क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?


मैं रचियता हूँ तेरा, पर

स्वयं भाव शून्य इंसान!

असत्य-स्वार्थ दिनचर्या मेरी,

सत्य भाव तेरी जान......

तू स्वयं साकार - सकल

पर देख,

मैं तेरी पहचान!!

क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?


जब लिखूं एक भाव छेडून....

मुखरित हों गीत गुंजन गान!

मैं करूँ साकार तुझको,

फ़िर तू बने मेरी आन......

मैं बड़ा या है बड़ी तू?

क्यों कर करूं मैं ज्ञान...

मैं तेरा तू सगिनी मेरी!

तू प्रियसी मैं प्राण!!

क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?


....एहसास!

मैं!


मैं!
साहित्य के नाम पर सजी पर,
कभी न पढी गयी!
किताब का एक प्रष्ठ मात्र हूँ!
मैं!
रचा तो गया पर,
कभी मंचित न हुआ!
उस नाटक का पात्र हूँ!!
मैं!
खोजो तो अथाह गहराई लिए,
शांत - प्रशांत हूँ!
मैं!
गर महसूस करो तो ,
एहसासों से बनी!
ओस की एक बूँद मात्र हूँ!!
मैं!
गर दो पल दुःख को बाटने ,
साथ बैठो तो....
हर नयन से फ़ुट पड़े वो नयन प्रपात हूँ!
मैं!
गर खुशी मैं पास बुलाओ तो.....
चक्षुओं की चमक, अधरों की खुशी,
और ह्रदय स्पंदन के मधुर धुन से सजा गान हूँ!
मैं!
स्वयं दिवा का दिवाकर हूँ!
मैं ही रश्मि का शशि!
मैं!
हर दिल मैं एहसास बन रहता हूँ,
फ़िर भी ख़ुद गुमनाम हूँ!
मैं!
शान्त- सौम्या "मुकुल "
झूम उठूं तो " मयुरा "
थोड़ा सा सीधा, थोड़ा सा शैतान हूँ!
मैं !
अपने ही अंतर्मन्न मैं खोया,
जो शब्दों मैं सिमटा तो.....
एहसास हूँ!!
मैं स्वयं सवाल का जवाब हूँ!
मैं कौन हूँ?
मैं क्या हूँ?

........एहसास!

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

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