भूल गया !

कहना चाह कर भी .....
कहना भूल गया!
शोर सुना इतना की ...
सुनना भूल गया!
चुप रहना सिख कर ......
चुप रहना भूल गया!
इंसानों की बस्ती में़़़़
इंसान चुनना भूल गया!!

दौड़ने की चाह थी़़़़
चलना भूल गया!
भावों की कदम ताल मैं .....
चाल अपनी भूल गया।
राह के राही देखे ़़़़़
रास्तों को भूल गया।
इनसानों की बस्ती में़़़़
इनसान चुनना भूल गया।।

अपना अपना करते करते ़़़
अपने को ही भूल गया।
अपने पन की भाषा सुऩ़़
हर परिभाषा भूल गया।
मिलते थे, मिलते हैं ़़़
दिल मेरा मिलना भूल गया।
इनसानों की बस्ती में़़़़
इनसान चुनना भूल गया।।

सपनों में प्रीत बसा के ़़़
जीवन के रीत भूल गया।
समझदारों कि दुनिया में ़़़
मन के मीत भूल गया।
बहरूपियों के मेले मे़़
खुद अपना रूप ही भूल गया।
इनसानों की बस्ती में ़़़
इनसान चुनना भूल गया।।
इनसान चुनना भूल गया।।


एहसास ़़़़।।

नमो नमो हे जन भारत , हुंकार भरो हुंकार भरो!

नमो नमो हे जन भारत , हुंकार भरो हुंकार भरो!

घोर अँधेरा छटने को हर,
नव प्रभात शुभ आने को!
मायूस चक्षुओं के अश्रू,
अब मुस्कानों से मिट जाने को!
शीश धरे गंगाशीष नर,
काशी से बन नाहर, आने को!!

हाथ बढ़ा के साथ बढ़ा के,
हर नर को इंद्र बनाने को!
सौम्य, साधना, शक्ति से,
निज कर सुराज फिर लाने को!!

 आस करो, विश्वास करो,
अब देश धर्म को शिरोधार्य करो!

नमो नमो हे जन भारत , 
हुंकार भरो हुंकार भरो!









सपनो  की नहीं ,अपनों की कमी!
ताकत की नहीं आदत की कमी!!
अब हरियाली की ओढ़ चुनरिया,
भगवा से  भव  पार करो!
नमो नमो हे जन भारत ,
हुंकार भरो हुंकार भरो!

गणतंत्र का बल, राजतंत्र सबल!
करना अब उन्नति का मन्त्र प्रबल!
चिर युवा हो,  नर इंद्र हो तुम!
जन शक्ति से प्रहार करो!
नमो नमो हे जन भारत , 
हुंकार भरो हुंकार भरो!







नमो नमो हे जन भारत , हुंकार भरो हुंकार भरो!… एहसास की कलम से। …

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

विशेष : यहाँ प्रकाशित कवितायेँ व टिप्पणिया बिना लेखक की पूर्व अनुमति के कहीं भी व किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना या पुनः संपादित कर / काट छाँट कर प्रकाशित करना पूर्णतया वर्जित है!
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित 2008