फ़साना है एक फ़साना था!

फ़साना है एक फ़साना था!

कैसी ये जिन्दगी, क्या इसके जीने का बहाना था!
क्या हकीकत है जो जी रहे,जो बीत गया वो भी क्या फ़साना था!!
जोश था मुझमे, तान लिए थे पंख,मुझे शितिज को छुके आना था!
हर तूफ़ान को झेला मैंने,पर टूटी वो ही शाख,
जिसपे बनाया मैंने आशियाना था!!

आँखों मैं रहे आंसू,पर राह मैं न रुकना जाना था!
दुनिया हंसती रही हमपे,और हमारी चाहत बस उनके शिकवे मिटाना था!!

साथी बने थे दुश्मन,या दुश्मनो को अपना जाना था!
सितम जो भी करे, हमें तो....हंस के अपना पन निभाना था!!

हारे नहीं खुद से, न ही हालातों का बुरा माना हे!
बस टूट जाता है कभी कभी ये दिल भी,छलकती आँखों से इतना बताना हे!!

खैर बिछा लो कांटे राहों मैं,हमें इन्ही राहों पे लहू से,
अपने क़दमों के निशाँ छोड़ जाना है!
लिख देंगे ऐसी इबारत बल अपने,खुदा भी कहेगा.......वाह!....एहसासों का खूब फ़साना हे!!

.....एहसास!

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

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