भूल गया !

कहना चाह कर भी .....
कहना भूल गया!
शोर सुना इतना की ...
सुनना भूल गया!
चुप रहना सिख कर ......
चुप रहना भूल गया!
इंसानों की बस्ती में़़़़
इंसान चुनना भूल गया!!

दौड़ने की चाह थी़़़़
चलना भूल गया!
भावों की कदम ताल मैं .....
चाल अपनी भूल गया।
राह के राही देखे ़़़़़
रास्तों को भूल गया।
इनसानों की बस्ती में़़़़
इनसान चुनना भूल गया।।

अपना अपना करते करते ़़़
अपने को ही भूल गया।
अपने पन की भाषा सुऩ़़
हर परिभाषा भूल गया।
मिलते थे, मिलते हैं ़़़
दिल मेरा मिलना भूल गया।
इनसानों की बस्ती में़़़़
इनसान चुनना भूल गया।।

सपनों में प्रीत बसा के ़़़
जीवन के रीत भूल गया।
समझदारों कि दुनिया में ़़़
मन के मीत भूल गया।
बहरूपियों के मेले मे़़
खुद अपना रूप ही भूल गया।
इनसानों की बस्ती में ़़़
इनसान चुनना भूल गया।।
इनसान चुनना भूल गया।।


एहसास ़़़़।।

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

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