एक बार कह दो.......!


क्यों हमे अपनाने से कतराते हो?
वो क्या है खूबी ? जो तुम हम में चाहते हो......
में भी औरों की तरह इश्वर की एक रचना हूँ.....
"तुम सबसे जुदा हो"!
कहकर क्यों हर बार अकेला छोड़ जाते हो?

मानता हूँ मेरे हाथ और जुबान दोनों...
ज्यादा बोलते हैं!
चाहते तो दिल को छूना पर,
हदों को छू जाएं, इतना बोलते हैं!
सही है, खामोश बुत की पूजा.....
जहाँ करता है!
पर उस बुत को भगवान् बताने वाले
"आराधना के शब्द" ही तो एहसास रचते हैं!
एक बार कह दो !
सदां के लिए खामोशी ओढ़ लेंगे....
चाहत तुम्हारी अराधना की है....
क्या हमे भी बुत बनाना चाहते हो?
क्यों हमे अपनाने से कतराते हो?..........वो क्या है खूबी?जो.........

मासूमियत को दिल में,
नादानी सीरत में....बसाए रहते हैं!
कोई दो पल साथ मुस्कुरा ले,
इसी लिए हर पल ठहाके लगाए रहते हैं.....
जानते हैं ये दुनिया समझदारों की है!
जहाँ पैसा है "भगवान्"
और भगवान् के "व्यापार" की भाषा....
ये मनीषी रचते हैं!
दुनिया हमे मूरख कह के हस्ती है.....
और हम हैं की.....इस हंसी में दुनिया बसाए रहते हैं!
एक बार कह दो!
होटों पर ही हंसी को दफना देंगे!
गुनाहगार तुम्हारे हैं तो,
क्या इस गुनाह की कीमत आंसुओं में चाहते हो?
क्यों हमे अपनाने से कतराते हो?..........वो क्या है खूबी?जो.........

दुनिया की हर चीज़, अलग नज़र से देखते हैं.....
नही जानते ये एहसास क्यों? और कैसे?
अपने जिगर में रखते हैं.....
हर पराये में अपनों को ढूँढते हैं...
और अपनों की आंखों में खुद को ढूँढते हैं!
जो पुरा कर सके,
अपनों के सभी अरमान...
अपनों का साथ पाने का हक़ वही रखते हैं!
यकीन मानो हर पल कोसा है खुद को....
की क्यों? इस जहाँ में हम
अपनी उपस्थिति रखते हैं.....
फिर भी ढेरों अरमान अपने दिल में रखते हैं!
एक बार कह दो!
सारे अरमानों के साथ इस दिल को भी" फंना" कर देंगे!
कम से कम एक आरजू तो
आपकी पूरी कर देंगे!
एहसास मासूम है गुनाहगार नहीं......
क्यों?
दूर जाकर इन्हें गुनाहगार ठहराना चाहते हो!
क्यों हमे अपनाने से कतराते हो?
वो क्या है खूबी ? जो तुम हम में चाहते हो......



......एहसास!

अनाथ


तन मन भूखा, जीवन रूखा!
पडा दुआरे तरस रहा है!!
ए श्रीष्टि के रचने वाले !
इसीलिए क्या मुझे रचा है!!

क्यों जाना दीया वसू - देवकी के!
दीया भाग्य न अपने जैसा!!
कंस राज की इस नगरी में!
न दीया सहारा यशोदा सा!!

था नही ज्ञान तुझको निर्दयी!
इस तन में उर्र और मन भी है!!
मन की भूख दबा भी लें!
पर उर्र की भूख का अंत नही है!!

तू है रखवाला जन-जन का!
पर भूल गया मुझ बालक को!!
अन्न, आँगन, ममता छिनी!
और छीन लिया मेरे पालक को!!

मजबूर पडा मृत्यु की गोद में!
दया से तेरी दूर रहा हूँ!!
क्या? भूखे मरने को ही जिया!
बस यही में तुझसे पूछ रहा हूँ!!

.......एहसास!

यादें

हर कदम पर,
जलाये रखते हैं, वफाओं के चिराग...
डर है कहीं,
देख कर राह मैं अँधेरा,
तेरी यादें,
रास्ता न भूल जाएं....
ये यादें जिन के सहारे,
जीने की तमन्ना,
लिए हैं हम,
हमराह वही,
गुमराह न छोड़ जाएं.....
है चाहत,
मेरी वफ़ा की कसम
तेरी यादों को,
सीने से लगाये हम,
तुझे न सही,
यादों मैं,
तेरी छाया को ही पा जाएं,
तेरी यादें,
रास्ता न भूल जाएं....

......एहसास!

शब्दों से शब्दों का बन्धन...


न सूरत जानू न मन....
शब्दों से शब्दों का ये कैसा बन्धन....!

दूर से कुछ एह्सास उडे चले आते हैं!
न जाने कैसे सारा समां महकाते हैं!!
नही दिखे कहीं गुलाब ........
पर न जाने कैसे महकते हैं गुलाबों के मधुबन!!
न सूरत जानू न मन...
शब्दों से शब्दों का ये कैसा बन्धन.....

छाया से डर, अकेले एक कदम नही बड़ा पाते!
मन के रथ पे सारा जहाँ नाप आते!!
अकेले हैं यूं तो जहाँ मे.....
पर न जाने कितने एहसास के हम-दम
न सूरत जानू न मन...
शब्दों से शब्दों का ये कैसा बन्धन.....

कितने रिश्ते दुनिया ने बनाये!
चाहे न चाहे, हमने रिश्ते निभाए !!
कुछ ऐसे भी रिश्ते हैं,
जो इस कलम ने बनाये!
एहसासों ने निभाए, एहसासों के अंतर्मन.....
न सूरत जानू न मन...
शब्दों से शब्दों का ये कैसा बन्धन.....


.....एहसास!

खुशियों को परखेंगे......


हम अपने दिल को चीर कर रख्देंगे
आज फिर खुशियों को परखेंगे...
हम आस लिए,
विश्वास लिए अपने कमसिन एहसास लिए
फ़िर जिद पर अड़कर देखेंगे...
हम अपने दिल को चीर कर रख्देंगे
आज फिर खुशियों को परखेंगे...
जो बिखर गए,
जो ठहर गए...
या इस दुनिया से बिसर गए,
वो किरदार मिटा कर रख देंगे...
हम अपने दिल को चीर कर रख्देंगे
आज फिर खुशियों को परखेंगे...
तुम मीत मेरे,
संगीत मेरे,
ह्रदय से जो निकले वो गीत मेरे.....
लो प्रणय निवेदन यही,
की निज समर्पण कर देंगे....
हम अपने दिल को चीर कर रख्देंगे
आज फिर खुशियों को परखेंगे...

......एहसास!

आख़िर क्यों!


कभी खुशियों को ढूंन्ढा करे,
कभी खुशियाँ हमे ढूंन्ढा करी,
हर गम मे फिर भी हम साथ रहे,
तो निगाहों ने अब तनहा क्यों आहें भरी!
ज़माने के सितम तो थे ही साथ सहने के लिए,
इसीलिए तो साथ साथ कसमे भरी!
छाया बनने का वादा तुम साथी करते रहे,
फ़िर हर अंधेरे मैं हमसे क्यों तुम छाया,
दूर रही!!
रौशनी मैं तो सब थे साथ मेरे,
तुम भी हातों मैं हाथ लिए साथ रही!
जब अपनापन पाने के लिए तुम्हे ताका करे,
तब आख़िर क्यों दूर जाने की बातें कही!!
जाना ही था तो साथ लिए जाते,
हम मौन पग धरते, चाहे कही,
आज इन बुझती आंखों से भी तुम्हे ढून्ढ्ते रहे,
पर आज भी दिल नही मानता,
आख़िर क्यों? तुम नही कही!!

.........एहसास

!!खांमोशी की सज़ा हमे यूं न दो!!

खांमोशी की सज़ा हमे यूं न दो,

की धड़कते दिल की धड़कन

सदा के लिए खामोश हो जाए!

अपने तनहा ख्वाब मे ही सही,

एहसासों को अपने लब छूने दो,

की एक बार फ़िर जीने की ख्वाइश हो जाए!!

कोई तो ऐसा मौका दो,

जब दिल का एहसास जुबान पर आ जाए!

न चाहो इन्हे तो रहने दो,

गर हो पसंद तो मौन समर्थन हो जाए!!

.....एहसास

तुम क्या दूर गए हमसे...!!


तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

हाथ पकड़ के वो बचपन मैं...
जब हम खेले छुप्नी-छुपाई.....
चाह के भी तब छुप ना पाये....
जब-जब तुमने आवाज लगाई.....
हार गए हर बार मगर,उस हार मैं भी हम जीते तुमसे......
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

सुबह सुबह स्कूल की बस मैं....
पास की सीट खाली रखना...
और बैठने पर पास तुम्हारे....
बस तुमसे ही बातें करना...
उन बातों मैं तुम को पाकर....
ख़ुद को भुला देते इस जग से.....
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

क्लास मैं जब मैं अवाल आता...
खुशी तुम्हारी नही समाती....
और कभी जब डांट मैं खाता...
मुझ से पहले तुम रो जाती....
मुंह बिचका के जब हम हाँसते...
हंसती फीजाएं खुशियों से....
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

बचपन साथ बिता कर...
जब आयी जीवन की तरुनाई....
साथ जियेंगे, साथ मरेंगे....
ले हाथो मैं हाथ, हमने कसम खायीं....
एक रहे हैं, एक रहेंगे.....
कोई रखे या न रखे नाता हमसे......
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

जग से तो हम लड़ भी लेते.....
पर नही भाग्य के आगे सुनवाई.....
क्यों दिए तुम्हे दो दिन, जीवन के कम...
हाय खुदाई तरस न आयी....
भूल गया तब नाम खुदा का.....
जब लिखी जुदाई उसने तुमसे......
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

वो लम्हा जब जीवन की डोरी.....
सिसक सिसक के टूट रही थी.....
गम मैं मेरे तुम, एक पल न रोना....
छलकती आँखें बोल रही थी....
"साथ तुम्हारे हर पल जीती...
नही चाहती बिछड़ना तुमसे"......
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

आज उदासी हर शब छाई....
क्यों मौत मुझे लेने न आयी....
हाय ये कैसी किस्मत पायी...
जो जीवन थी, वो ख़ुद न जी पायी॥
ऐसी सज़ा क्यों मिली है हमको....
हाय क्या गुनाह हुए थे हमसे....
तुम क्या दूर गए हमसे...
एहसास छलक उठे,
कुछ आंखों से, कुछ कलम से..........

.......एहसास

हम तुम क्यों खामोश हैं !

हम तुम क्यों खामोश हैं !
सारी कायनात प्रीत के आगोश मैं है!
हम तुम क्यों खामोश हैं!!
जीया की हर धड़कन ......
गीत प्यार का गाती है......
सासों की आरोहन - अवरोहन.....
तुम्हे अपना बताती है......
लहू भी लिए रंग प्रेम का है.......
सारी कायनात प्रीत के आगोश मैं है!
हम तुम क्यों खामोश हैं!!

तड़पते होटों की कसक को .....
बहते आंखों के नीर दिखाते हैं.....
आलिंगन को कितने अधीर है........
ये फैले मेरे बाजू बताते हैं .....
झुकी नज़रें अब प्यार पाने को हैं....
सारी कायनात प्रीत के आगोश मैं है!
हम तुम क्यों खामोश हैं!!

पंछी भी बिन कहे साथी का दर्द समझते हैं....
प्रीत का बिन बोले........
एहसास वो करते हैं....
दूरी अनंत, अम्बर और धारा मैं है......
फ़िर भी वो क्षितिज पर मिलते हैं......
प्रीत और प्रीती का मिलन .....
बिन लाव्जों के करते हैं........
अब शब्दों का सूखने को कोष है......
सारी कायनात प्रीत के आगोश मैं है!
हम तुम क्यों खामोश हैं!!

.......एहसास

तुम तो सो जाओ तारों!


तुम तो सो जाओ तारों! तुम्हे कसम हमारी है.........

परेशान रात सारी है!
तुम तो सो जाओ तारों,
तुम्हे कसम हमारी है!!
मन बोझिल है, फ़िर छाई खुमारी है!
तुम तो सो जाओ तारों तुम्हे कसम हमारी है.........
फ़िर चाँद नज़र आ रहा है!
एक नज़र वो मुझे भी ताके....
बावरा मन यही चाह रहा है...
पर मेरे एहसासों की रौशनी क्या उस तक पहुँचेगी!
यही ख्याल पल - पल सता रहा है!
लो फ़िर जला ली लौ चाहतों की है!
तुम तो सो जाओ तारों.....................
माना तुम यार हमारे हो!
हमारी खुशियों पर ख़ुद को वारे हो!
पर मन मैं कसक तो उसको पाने की है!
जो दूर से लगता अपना है!
पर जिस पे नज़र ज़माने की है!!
फ़िर रात भर पी लेंगे!
अभी जाम बाकी है.....
तुम तो सो जाओ तारों........................
समय कटेगा, ये तन्हाई भी रुसवा कर जायेगी!
ज्यों थमेंगी साँसे, मुन्देंगी आँखें......
यूँही ये रात भी कट जायेगी!
रहेगा खवाब अधूरा........
मन की आस अधूरी रह जायेगी!
जहाँ सारा , फ़िर जागेगा ले अन्ग्राई!
और हमारी मिलन की आस,प्रभात किरण मैं खो जायेगी!!
तुम मेरे चाँद को संभाले रखना.....
जलने दो, ये एहसासों की चीता हमारी है!!
तुम सो जाओ तारों तुम्हे कसम.................
परेशां रात सारी है! तुम सो जाओ तारों!!

...................................एहसास!

एक गुनाह फिर आज किया!

एक गुनाह फिर आज किया!
मैंने किसी से प्यार किया!!
नयन भर के जब उस को ताका....
नज़रों ने उसकी भी, इशारा किया....
ओठ के कॉलर, तान के सीना,
फिर हमने तरी किया.....
" EXCUSE ME... क्या मिले हैं पहले"
दे इस्माइल इश्क का आगाज़ किया......
हुआ जो INTRO बात चली फिर,
mac'dee मैं Pizza से TIME स्पिसे किया....
देख के तुमको कुछ kuchh होता,
फिर दिल ने इजहार किया....
तुम que मैं नम्बर 5, खडे हो,
REPLY उन्होने with PRIDE किया.....
पहले केस वो निपटा लूं, फिर
बारी तुम्हारी आएगी,
नही बुरे तुम भी कुछ ज्यादा,
कुछ इस तरह उन्होने इकरार किया.....
उठा BEG और बाय कहके ,
MADEM ने प्रस्थान किया.....
लुटे पिटे से बैठे सीट पर,
वल्लाह ये कैसा प्यार किया......
एक गुनाह फिर आज किया....
मैंने किसी से प्यार किया.....

...एहसास

फिर कोई ख्वाब अधूरा रह गया!


फिर कोई ख्वाब अधूरा रह गया!
कोई गुलाब अधखिला रह गया........!!
तनहईयों कि चादर कुछ इस तरह ओढ़ कर बैठे रहे....
कि अँधेरेमैं डूबे रौशनी को खोजते रहे!!
मावस से पूनम, पूनम से मावस "रात का राजा " भी अपनी कलाएं बदलता रहा ....
और हम " कलाराहित",पल-पल "जीवन कि रात" को जीते रहे....
कहा करते हैं,समय का पहिया कभी थमता नहीं!
पर हम तो अपने समय के साथ,थामे से खडे रहे......
ख्वाब का दिया जलाये बैठे थे....
दो हाथों का सहारा, तन्हाई कि चादर हटाएगा...
रौशनी कि चाह मैं पलकें भिगाये बैठे थे.......
हर आहट पर लौ डगमगा जाती...
कि किरणों से "आलिंगन कि चाह" उसे सताती....
तन से मन तक केवल भूख ही थी हमारी....
"इंसानों के जहाँ" मैं जी रहे हैं,आज उत्तर गयी ये भी खुमारी.....
पहली बार कोई अपने पन से हम तक आया....
ड़बड्बायी आंखों से ताका,तो उसे "काल का साया" पाया ......
बहुत देर कि अपनाने मैं........
जल्दी कि होती "परमात्मा " से मिलवाने मैं....
अंगों से लाचार, इस जहाँ मैं भेज दिया....
गुनाह थे मेरे , ऐसा कर तुमने गुनाह किया......
आत्मा को तो तुमने साथ ले लिया....
पर ये बदनसीब, तिरस्कृत रह गया....
हाय! फिर कोई ख्वाब अधूरा रह गया....
फिर कोई गुलाब अध खिला रह गया...!


..........एहसास!

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

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