जब चन्दा को मिली चाँदनी, पूरण चाँद कहाया।।

वर्ष बीत गए जीवन के
एक वर्ष नव आया।
कोमल-चंचल-मधुरित मन तब,
हौले से मुस्काया।
तारों जड़ी चुनरिया संग तारा,
अंगना में उतराया।
जब चन्दा को मिली चाँदनी,
पूरण चाँद कहाया।।

जुटे हुए थे-खिले हुए थे,
स्व -जन हर्षाये,
रंग-बिरंगे परिधानों से काया मुस्काये।
साँसे थी महकी-महकी सी,
संगत सब भरमाये।
ढोल-नगाड़ों की सुन धुन वो,
लौट-लौट मन जाया।
जब चन्दा को मिली चाँदनी,
पूरण चाँद कहाया।।

चढ़ के घोड़ी-तन के घोड़ी,
सखा संग बाराती टोली।
वो भी नाचे-मन भी नाचा,
याद आ रही प्रियतम बोली।
ठिठक गयी बाराती टोली,
द्वार एक निज आया।
जब चन्दा को मिली चाँदनी,
पूरण चाँद कहाया।।

नर थे आज बने नारायण,
आरत-थार घुमाया।
आधी-देह की जननी ने फिर,
प्राण-प्रवेश कराया।
प्रेम-कुसुम की वरमाला से,
वधु ने वर अपनाया।
जब चन्दा को मिली चाँदनी,
पूरण चाँद कहाया।।

सात ये फेरे-साथ ये तेरे,
वचनो से बंधवाया।
कन्यादान से झोली भरके,
में राजन सा आया।
नज़र बदल गयी थी अब हर,
वर ने वधु को पाया।
जब चन्दा को मिली चाँदनी,
पूरण चाँद कहाया।।

वर्षों-वर्ष,हर्षों-हर्ष,
आनंद आशीष हे पाया।
यादों के उन् मोती को चुन,
एहसास ने चित्र सजाया,
जब चन्दा को मिली चाँदनी,
पूरण चाँद कहाया।

मुकुल सिंह (एहसास)

धन्यवाद !

एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!

विशेष : यहाँ प्रकाशित कवितायेँ व टिप्पणिया बिना लेखक की पूर्व अनुमति के कहीं भी व किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना या पुनः संपादित कर / काट छाँट कर प्रकाशित करना पूर्णतया वर्जित है!
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित 2008