
चंचल चितवन की अर्थी पर,
चुपचाप खड़ा इन् रतियन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
जग सोया है, दिल रोया है....
पर आए न आंसू नयनन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
नंगे बदन की पहली बारिश,
वो आँगन, वो गलियन मैं!
वो साथी, वो सखा सहेली,
मचलती बुँदे अत्खेलिन मैं!!
आज यही बारिश की बूंदें,
आग लगाती तन-मन- मैं,
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
चुपचाप खड़ा इन् रतियन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
जग सोया है, दिल रोया है....
पर आए न आंसू नयनन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
नंगे बदन की पहली बारिश,
वो आँगन, वो गलियन मैं!
वो साथी, वो सखा सहेली,
मचलती बुँदे अत्खेलिन मैं!!
आज यही बारिश की बूंदें,
आग लगाती तन-मन- मैं,
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
भीगी चपलता को जब ममता,
सिमटाए अपनी बाहिन मैं!
शब्दों मैं क्रोध, भावों मैं आशीष...
और मुकाये बातिन मैं
आज खड़ा फ़िर भी मैं भीगूँ!
पर छांव न ममता की तन-मन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
हमजोली के संग हाथों मैं हाथ...
दिन-दिन भर भीगे बगियन मैं!
और वो कागज़ की कश्ती,
साथ बहाई निज- नदीयाँ मैं!
किस और ये बहता मैं चला......
नही पता इन् जीवन - धारन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
हुआ बड़ा, निज- पाँव खड़ा...
फ़िर भी कितना लाचार खड़ा!
इन् मदमस्त बहारों मैं भी...
बूंदों से बचता तैयार खड़ा!
अपनी दशा पे रो सकूं...
अब रहे न आँसू इतने , इन् नयन-निकेतन मैं!
अब के सावन, घिर आना बदरा,
इन् पथराई अखियन मैं!!
.......एहसास!