छोड़ गए अकेले क्यों साथ नहीं दीया!
प्यार करना तो सिखाया, क्यों प्यार नहीं किया?
रहूंगा जिंदगी में शामिल....
कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में साथी बन....
पर साथ नहीं रहूँगा!!
क्यों मुझे तन्हाई का उपहार दीया?
शायद जीवन का वो वसंत था ....
जब हम एक साथ हाथों में हाथ ले हंसा करते थे!
कलियाँ भी खिली थी झूम के .....
साथ ,इस पल में कुदरत ने भी दीया!
आज जीवन का पतझड़ है....
कुदरत भी आंसू बहाती मेरे साथ है!
तुम छोड़ गए अकेले, क्यों साथ नहीं दीया?
में तो चला था हर कदम अकेला...
परछाई क्या, तुमने सिखलाया!
बेशक चलो तुम मेरे आगे,
मैंने ऐसा कब न चाहा...
निकल गए तुम इतने आगे, मुझे अपनी छाया तक न बनने दीया!
तुम रौशनी के सागर में हो खोयी...
पर याद रहे, ये चकाचोंध अक्सर भटकाजाती है...
यहाँ कुछ अँधेरा ही सही पर ॥
अक्सर अँधेरे में अपने नजदीक आ जाते हैं!
फिर , छोड़ गए अकेले क्यों साथ नहीं दीया!
प्यार करना तो सिखाया, क्यों प्यार नहीं किया?
.......एहसास!
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