जौ आंखों की शरम को समझें , रिश्तों की मर्यादा पहचाने...
न जाने कहाँ खो गाए, वो एहसास अब कहाँ हैं?
बैंक बैलेंस से तो "भगवान्" भी खरीद लिए जाते हैं,
प्यार क्या, पैसे के दम प्यार के एहसास तक बिक जाते हैं।
शर्म जो कभी गहनों में शुमार हुआ करती थी,
अंग के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए अब तो वो गहना..."गिरवी" रख आते हैं!!
अभी तो हम विकसित हुए हैं...मर्यादा के चोले सिर्फ कुछ कम किये हैं...
परम्पराओं को पिछ्डापन, और आध्यात्म को अंधविश्वास ही कहा है,
पढ-लिख गए हैं,
अभी तो विकास के कई प्रदर्शन बाकि हैं!!
खोज न करो, ये x-जेनरेशन का जहाँ हैं....
कौन बच्चा है संस्कारी, ये संस्कार कहाँ हैं...
कहीं सोशल स्टेटस घट न जाये, बेचारी घबराती हैं !
माँ भी अब बचे को दूध पिलाने से कतराती हैं!!
जो गुजर गयी, उस पीड़ी की बात करते हैं!
जो राम और कृष्ण के किस्से, पूजा की तरह पड़ते हैं!!
ये तो आधुनिकता का ज़माना हैं!
जहाँ हर जुबान पर लेटेस्ट M-टीवी, F-टीवी के किस्से चलते हैं!!
ना दो उपदेश ऐसे जिनका न अस्तित्व यहाँ हैं!
बस हम हैं विक्सित, हमारी उन्मुक्तता, उछ्श्रन्खालता यहाँ हैं !!
बार बार आके रोको न ऐसे!
नहीं यहाँ कोई मानव, न रिश्ता...
एक बिना एहसास का, मशीनी पुतला यहाँ हैं!!
जो शर्म से सिमटा...वो एहसास कहाँ हैं?
जो मर्यादा में मिटाता ......वो एहसास कहाँ हैं?
जो संस्कार को साधे....वो एहसास कहाँ हैं?
जो रिश्तों को पहचाने...वो एहसास कहाँ हैं?
एहसास किससे कहे...किसे पुकारे,"सत्यम-शिवम्-सुन्दरम", जो सर्वोपरी॥
भगवान् जो कभी घर घर में था ....
मंदिरों में जा बैठा॥
अब कहाँ हैं? अब कहाँ हैं?
........एहसास !
2 टिप्पणियां:
जो शर्म से सिमटा...वो एहसास कहाँ हैं?
जो मर्यादा में मिटता ......वो एहसास कहाँ हैं?
जो संस्कार को साधे....वो एहसास कहाँ हैं?
जो रिश्तों को पहचाने...वो एहसास कहाँ हैं?
................................................कहाँ है?कहाँ है?कहाँ है?
बहुत सही ढंग से आज की छवि उतारी है
अपने शब्दों की ताकत को जानो
पुरानी सभ्यता लाने का जज्बा है इसमें .......
प्रयास सराहनीय है.............पर शायद शब्द उतने सही तरीके से गुंथे नहीं है......थोडी और प्रयास की गुंजाईश है......
waise bhi mujhme jayda samajh hai nahi..........to keep it up.....Please ignore my suggestion
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