गम बहुत थे,
सहने के लिए!
कुछ पलों की खुशियों के सहारे!!
जब भी दिखी हमतक आती बहारें!
न जाने क्यों हम ही बन गए......
लोगों की खुशियों को पूरा करने वाले,
टूटते तारे!!
एक नही अनेक मिले ऐसे,
जो हमे अपना कह कर पुकारा करे!
पर जब लड़खडा कर खुद ही गिरे हम,
दूर तलक भी नज़र न आये,
केवल " दो हाथों के सहारे"!!
घोर अमावासी के सितारों की बरात में.....
दुल्हा बन इतराते रहे!
पर न जाने क्यों हम ही बन गाए,
उन् सितारों की झलक को सार्थक करने वाले...
टूटते तारे!!
न कोई दुश्मन,
न कोई पराया.....
सभी तो थे हमारे!
फिर भी खुद को अकेला पाया...
जीवन के हर चोराहे!!
जब तलक दूर रहे वो हमे निहारा किये,
खुद हम जब उनकी चाहत के रास्ते नीचे आने लगे!
तो, न जाने क्यों हम ही बन गए,
दूसरे किसी को पाने की चाहत को पूरा करने वाले.......
टूटते तारे!!
......एहसास!
6 टिप्पणियां:
सुन्दर एहसास ........
bahut khubsurat,jab aapne pe bitati hai,tuta tara bhi saath nahi deta,beautiful poem.
http://mehhekk.wordpress.com/
बहुत ही अच्छा लिखा है एहसास...पढ़ कर अच्छा लगा.
"टूटते तारे"...........bahut achchha ...iss kavita main tumne apne dard ko bahut sahi tarike se chitrit kiya hai.........great!!
bhaiya
main apki kavya-rachna ka kaayal ho gaya....NitesH
आपकी यह रचना वाकई काबिलेतारीफ |
यह कविता एक सच्चाई है जो सभी जानते हैं पर मानता कोई नहीं |
"एहसासों का सागर" तो बहुत गहरा निकला |
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