कहना चाह कर भी .....
कहना भूल गया!
शोर सुना इतना की ...
सुनना भूल गया!
चुप रहना सिख कर ......
चुप रहना भूल गया!
इंसानों की बस्ती में़़़़
इंसान चुनना भूल गया!!
दौड़ने की चाह थी़़़़
चलना भूल गया!
भावों की कदम ताल मैं .....
चाल अपनी भूल गया।
राह के राही देखे ़़़़़
एहसास ़़़़।।
कहना भूल गया!
शोर सुना इतना की ...
सुनना भूल गया!
चुप रहना सिख कर ......
चुप रहना भूल गया!
इंसानों की बस्ती में़़़़
इंसान चुनना भूल गया!!
दौड़ने की चाह थी़़़़
चलना भूल गया!
भावों की कदम ताल मैं .....
चाल अपनी भूल गया।
राह के राही देखे ़़़़़
रास्तों को भूल गया।
इनसानों की बस्ती में़़़़
इनसान चुनना भूल गया।।
अपना अपना करते करते ़़़
अपने को ही भूल गया।
अपने पन की भाषा सुऩ़़
हर परिभाषा भूल गया।
मिलते थे, मिलते हैं ़़़
दिल मेरा मिलना भूल गया।
इनसानों की बस्ती में़़़़
इनसान चुनना भूल गया।।
सपनों में प्रीत बसा के ़़़
जीवन के रीत भूल गया।
समझदारों कि दुनिया में ़़़
मन के मीत भूल गया।
बहरूपियों के मेले मे़़
खुद अपना रूप ही भूल गया।
इनसानों की बस्ती में ़़़
इनसान चुनना भूल गया।।
इनसान चुनना भूल गया।।
एहसास ़़़़।।
12 टिप्पणियां:
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
बहुत सुन्दर !
dhanywaad sushma ji and prasoon ji
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-02-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1894 पर दिया जाएगा
धन्यवाद
बहुत सुन्दर...
सुंदर एहसास
बहुत ही अच्छी और दिल को छू लेने वाली कविता।
प्रतिभा जी धन्यवाद।
विम्मी जो धन्यवाद ।
कहकशां जी इस प्रशंशा के लिए धन्यवाद।
दिल को छू लेने वाली कविता।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 03 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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