मैं, मैं हूँ तभी तुम मुझ से दूर भागते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
मैं हँसता हूँ , दिल से गुनगुनाता हूँ,
शायद एक मीठी मुस्कान पर तुम्हारे सीने से लग जाता हूँ....
इसीलिए तुम मुझे दुत्कारते हो,
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
आज मेरे और तुम्हारे बीच वो ऐश्वर्य नही, जो तुम चाहते हो!
पर पलकें बंद कर देखो,
तभी मैं तुम्हे और तुम मुझे महसूस कर पाते हो!!
पल-पल आ जाता हूँ, तुम्हारे इतने करीब...
तभी तो पीछे धकेल, ख़ुद दूर हो जाते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
खामोशी छाई है चरों तरफ़....
और मैं सिर्फ़ एक अपना चाहता हूँ!
हर एक चेहरे को देखता हूँ!
बस एक नज़र भर कोई मुझे देखे, यही चाहता हूँ!!
जीवन पथ के इस मोड़ अंधेरे खडा हूँ!
इसीलिए राह का पत्थर समझ,
एक पल की खुशी ले, ठोकर मार जाते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
न भूलो मौसम कभी एक सा नही रहता!
कभी दम-ठोकर, तो कभी तुफानो-बवंडर!
पत्थर भी मंजिल को बढता!!
बढ़ रहा हूँ मैं भी अपनी मंजिल,
बेशक तुम थोड़ा तेज कदम बढ़ जाते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
आज मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ!
और तुम दूर चले जाते हो,
एक दिन तुम चाहोगे साथ मेरा....
पर मैं बहुत दूर हो जाऊंगा!
तब तुम वो सब मुझ मैं पाओगे,
जो किसी अपने मैं चाहते हो!
पर मुझे महसूस भी नही कर पाओगे,
बेशक तब तुम मुझे छूना चाहते हो!!
मेरा क्या खामोश खडा, खामोश हूँ......
खामोश सदान को हो जाऊंगा!
पर उठती चिता का धुंआ तब भी , उन् रोती आंखों से पूछेगा?
फ़िर आज रस्मे निभाने आए हो?
जोड़ लिए हात, फ़िर वीराने मैं अकेला छोड़ जाते हो?
अन्तिम विदाई मैं ये तो कह दो.....
क्यूँ मैं वैसा नहीं? जिसे तुम चाहते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
....Ehsaas
8 टिप्पणियां:
कितनी सहजता से तुमने ऐसे चरित्र को लिखा है,ऐश्वर्य के पीछे अंधी चाह लिए ये चेहरे दूर रहते हैं ,पर वक़्त बदलता है और तुमने सच का आइना बखूबी उभारा है....
एक दिन तुम चाहोगे साथ मेरा....
पर मैं बहुत दूर हो जाऊंगा!
तब तुम वो सब मुझ मैं पाओगे,
जो किसी अपने मैं चाहते हो!
पर मुझे महसूस भी नही कर पाओगे,
अत्यंत ही मार्मिक और संवेदनशील कविता है .. मै तो मंत्रमुग्ध हो गया .
bhai ji main aapke kavita ko apne profile main likhan chahta hun agar aapki anumati ho to.
बहुत अच्छी, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....बहुत अच्छी वापसी मुकुल....!!
इस चाहत को न जानो तुम कि कितना चाहा है तुमको
वो कहते हैं मैं लायक नही, ख़ुद से ज्यादा चाहा है जिनको
प्यार क्या है? एहसास क्या है? पता चला था तुमसे ही हमको
दूर जाने कि बात करते हो,मैं अपनी खामोशी से फिर पुकारूंगा किनको ?
अक्षय-मन
bhai , ji , itne din kahan chale gaye the.. mere blog par aap hi ne to comments dekhar hausla badhaya tha mera. aaj kal aate hi nahi ho . main naraaza hoon yaar aapse.
ab ye kavita ...
बस एक नज़र भर कोई मुझे देखे, यही चाहता हूँ!!
shaandar abhivyakti , jeevan ka nichod, aur prem ki saralta .. wah bhai wah ..
itni achi kavita ke liye meri badhai sweekar karen.
pls visit my blog for my poems. http://poemsofvijay.blogspot.com/
dhanyawad.
vijay
पत्थर भी मंजिल को बढता!!
बढ़ रहा हूँ मैं भी अपनी मंजिल,
बेशक तुम थोड़ा तेज कदम बढ़ जाते हो!
gahre bhaav ..sirf or sirf mehsoos karne ke liye ..kuch kahne ke liye nahii shayad.
bahut achi kavita likhi hai
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