न जाने क्यूँ तोड़ते हैं, उन्ही दिलों को!
जिन दिलों मैं हम बस जाते हैं!!
पल पल रोते हैं, खुली आंखों हम....
झुकी पलकों वो इल्जाम मैं कहते हैं!
हम बहुत सताते हैं!!
सोचते हैं कौन सूत्रधार, इन् गुनाहों का!
क्यूँ न चाह कर भी अपनी आंखों से रिसते
आन्सूनों की कीमत चुकाते हैं!!
फ़िर भी हर उठती निगाह कहती है!
हम बहुत सताते हैं!!
शीश उठा गयी अट्टालिकाएं!
बुलंद हो गए दरवाजे हैं!
हम रह गए इस पार बेबस....
सुने-उजडे विश्वास के गलियारे हैं!!
एहसास कदमो मैं बिछाते!
काश कोई पास आ कहता!!
की, हम बहुत सताते हैं!!
....एहसास!