क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?
मदिर की आरती का स्वर है,
या है मस्जिद की अजान....
गुरुमुखी से सजी है तू,
या बाइबल है तेरी शान?
कवि का तो धरम है,
है एक पहचान!!
क्या है तेरा धरम?
या तू इससे अनजान?
क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?
क्या तेरी पहचान?
मैं रचियता हूँ तेरा, पर
स्वयं भाव शून्य इंसान!
असत्य-स्वार्थ दिनचर्या मेरी,
सत्य भाव तेरी जान......
तू स्वयं साकार - सकल
पर देख,
मैं तेरी पहचान!!
क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?
क्या तेरी पहचान?
जब लिखूं एक भाव छेडून....
मुखरित हों गीत गुंजन गान!
मैं करूँ साकार तुझको,
फ़िर तू बने मेरी आन......
मैं बड़ा या है बड़ी तू?
क्यों कर करूं मैं ज्ञान...
मैं तेरा तू सगिनी मेरी!
तू प्रियसी मैं प्राण!!
क्या है तू , ऐ कविता?
क्या तेरी पहचान?
क्या तेरी पहचान?
....एहसास!
4 टिप्पणियां:
bahut pyari bhai...
कविता की जो पहचान तुमने दी है,
जिन-जिन भावों से उसे बांधा है,
वाह!
इन भावनाओं की जितनी भी प्रशंसा करूं-कम होगी.
बस मेरा आशीष लो.......
कविता को इसी तरह जानो,
और उसे हर बार एक नया आयाम दो.........
ati sunder
beautiful definition.....
one more available on Kritya...
एक टिप्पणी भेजें