कविता तेरा रूप अक्सर धुन्धता हूँ.....
पर हर बार तेरी छाया मैं दिलबर को चूमता हूँ...
कभी तू उसकी आँखों मैं समाया गहरा सागर है
तो कभी लबों पे ठहरी शबनम की बूंद है ॥
कभी केशों की कालिमा मैं छिपी घनघोर घटायें...
कभी चंचल चितवन से झोमता मयूर॥
उसकी साँसों मैं गूंजती तेरी मल्हारें
खामोशीमैं सिमटा भावों का ग्रन्थ....
महबूब पे रचता हूँ कविता...
या कविता मैं महबूब संग झूमता हूँ
कविता तेरा रूप अक्सर धुन्धता हूँ.....
पर हर बार तेरी छाया मैं दिलबर को चूमता हूँ!!
.......एहसास!
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