सुन कहीं दूर चिडियां हैं चेह्की, खिली कलि कोई, खुशबु महकी,
फिर बैलों की घूंघर खनकी, पनघट पर भी पायल छनकी,
रवि चडा फिर चाँद है भागा, हर आँगन, अंगडाई ले जागा!
पर आँख का मेरी, छटा न अँधेरा.....
जड़ ले बैठा, वहीँ अभागा!
ओरे सखा! मुड के तो देखो..... एक नज़र भर!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!
नभः सा है आँगन, बड़ा मन-भावन!
बैठ किनारे छूता, पुरवा का दामन!!
गुंजित कितना मन-का-मधुबन!
तुम भी देखो संग, इन नयनन-मन!!
दो पल को तो मेरे पास ठहर कर!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!
सुन आँखों वाले, मन के हो काले!
जगती यही है, ये वही हैं उजाले!!
छुपी हुयी है ये सुन्दरता, तेरी ही आँखों के आले!
बहा-बहा के आँसू, इन्ही से गुनाह ले!
पर-उपकारों के खोल चक्षु!
ओ मितवा! देख सहर पर!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!
फिर खामोशी का धुंआ है छाया, चिडियों का झुरमुट चेह्काया,
पनघट शांत हुए हैं फिर से, कहीं झींगुर का गीत गुंजाया,
लौट निशा का रजा आया, हर घर-आँगन अलसाया,
पर आँख का मेरी, छटा न अँधेरा.....
जड़ ले बैठा, वहीँ अभागाओरे सखा!
साथ तो ले चल! आके मुझे गल-बाहों भर!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!
साथी.....!
छोड़ अकेला, जा रहे कौन पथ पर!!
...एहसास!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो
मैं, मैं हूँ तभी तुम मुझ से दूर भागते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
मैं हँसता हूँ , दिल से गुनगुनाता हूँ,
शायद एक मीठी मुस्कान पर तुम्हारे सीने से लग जाता हूँ....
इसीलिए तुम मुझे दुत्कारते हो,
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
आज मेरे और तुम्हारे बीच वो ऐश्वर्य नही, जो तुम चाहते हो!
पर पलकें बंद कर देखो,
तभी मैं तुम्हे और तुम मुझे महसूस कर पाते हो!!
पल-पल आ जाता हूँ, तुम्हारे इतने करीब...
तभी तो पीछे धकेल, ख़ुद दूर हो जाते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
खामोशी छाई है चरों तरफ़....
और मैं सिर्फ़ एक अपना चाहता हूँ!
हर एक चेहरे को देखता हूँ!
बस एक नज़र भर कोई मुझे देखे, यही चाहता हूँ!!
जीवन पथ के इस मोड़ अंधेरे खडा हूँ!
इसीलिए राह का पत्थर समझ,
एक पल की खुशी ले, ठोकर मार जाते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
न भूलो मौसम कभी एक सा नही रहता!
कभी दम-ठोकर, तो कभी तुफानो-बवंडर!
पत्थर भी मंजिल को बढता!!
बढ़ रहा हूँ मैं भी अपनी मंजिल,
बेशक तुम थोड़ा तेज कदम बढ़ जाते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
आज मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ!
और तुम दूर चले जाते हो,
एक दिन तुम चाहोगे साथ मेरा....
पर मैं बहुत दूर हो जाऊंगा!
तब तुम वो सब मुझ मैं पाओगे,
जो किसी अपने मैं चाहते हो!
पर मुझे महसूस भी नही कर पाओगे,
बेशक तब तुम मुझे छूना चाहते हो!!
मेरा क्या खामोश खडा, खामोश हूँ......
खामोश सदान को हो जाऊंगा!
पर उठती चिता का धुंआ तब भी , उन् रोती आंखों से पूछेगा?
फ़िर आज रस्मे निभाने आए हो?
जोड़ लिए हात, फ़िर वीराने मैं अकेला छोड़ जाते हो?
अन्तिम विदाई मैं ये तो कह दो.....
क्यूँ मैं वैसा नहीं? जिसे तुम चाहते हो!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
शायद मैं वैसा नही, जिसे तुम चाहते हो!!
....Ehsaas
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धन्यवाद !
एहसासों के सागर मैं कुछ पल साथ रहने के लिए.....!!धन्यवाद!!
पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा मैं .......आपका एहसास!
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित 2008
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